1/28/2012

चाँद में भी दाग है!


अज रात चाँद से मैंने बातें की
कोशिश बहुत की उसे समझाने की
बचपन की दोस्ती का भी दिया दिलासा
पर उसे लगा मैं कर रहा था तमाशा
शिकायत उसकी थी बड़ी वाजिब
कहता मनुष्य कर रहा साजिश
उसके घर को हथियाने का
उसपे जीवन बसाने का
मैंने बोला है नहीं ये कोई साजिश
तुम्हारे वीराने ग्रह पर
मनुष्य जीवन लायेगा
सारा जग तुम्हारे गीत गायेगा
इसमें क्या है तुम्हे परेशानी?
मुझे मालूम क्या करता इन्सान अपने ग्रह के साथ
लोभ में कर देता है सब सर्वनाश
माना मनुष्य बोहोत बुरा होता है
अपने ही कर्मो में कुचला होता है
पर हे चाँद,
तुम हमको जीवन दोगे
इसमें होगी तुमारी शान
खोया सा चाँद
छिपा गया बादलो के बीच जाके
इतने शीतल चाँद को
कवियों की जान को
ये कैसे विचार आए
हमारे जैसा भय , संकुचित मन
कुछ देर रहा मैं अचंभित
एकटक निहारता रहा उसको
देखा की उसमे भी तो दाग है
उसका भी एक हिस्सा बस अंधकार है...

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